शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

सलाम

एक दौर था,
जब लोग उगते हुए सूरज को सलाम करते थे।
ये दौर नया है लोग
चमकते सितारे को सलाम करते हैं
बड़ा गजब का चलन है
भीड़, लोगों को रौंदती है
फिर भीड़ क्यों बनते हैं लोग?
लोग ही सवाल करते हैं।

सफलता की दौड़ में हैं सभी
आगे निकलने की होड़ में हैं
सूरज और सितारे के बीच
लोग, खुद को कामयाब कहते हैं।

अजीब खेल है,
आसमान वाले तेरा
लोग तुझे नहीं, तेरे बंदों को नहीं
खुद के डर को सलाम करते हैं।

अच्छा चलो बता दो
कि दुनिया में क्या भला है?
सच बड़ा है, झूठ भारी है
या बीच का जो है हम किसको सलाम करते हैं।

8 टिप्‍पणियां:

  1. स्‍वागत है भई आपका ब्‍लॉग की दुनिया में...

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  2. अच्छा चलो बता दो
    कि दुनिया में क्या भला है?
    सच बड़ा है, झूठ भारी है....

    झूठ के इस दरबार को मुंह चिढ़ाते आपके इस सच का स्वागत है अवतंश भाई |

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  3. गुरू आप का इस्तकबाल करता हूं तमाम ब्लॉगेरियों की तरफ से।

    आप की आगाज पसंद आयी.. धमाकेदार शुरूआत है़़़़़

    सवाल के माध्यम से सवाल बहुत खूब...pseudo-intellectuals से intellectuals तक सभी इसके जद में हैं

    शुभकामनाएं भविष्य के लिए

    अविनाश सिंह

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  4. Most Welcome. Hope you'll pour more of your creations here, apart from other niches.

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  5. ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है।
    सुन्दर रचना के लिए शुभकामनाएं।
    लिखते रहिए, लिखने वालों की मनज़िल यही है।
    भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकून पहुंचाती है।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com

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