शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

कुछ खोया सा कब लगता है?

चलों ढूंढते हैं खुशियां
एक राजधानी की रात में,
रौशनी से जगमगाते
दीपावली के दीपों के साथ में.
ये दिल्ली है एक शहर,
जहां खुशियां हैं बेशुमार.
रेल है मेट्रो है, कार-बसों की है कतार.
मंदिर है मस्जिद है, क़िला और कुतुब का है मीनार.
सुख सुविधा के बाज़ार हैं
इंडिया गेट के आहाते की सैर है.
जनपथ-राजपथ पर टहलते गणमान हैं.
और साउथ ब्लॉक से दिखता पूरा हिन्दुस्तान है.

अरे! खूब खुशियां हैं यहां,
सिग्नल फ्री है ट्रैफिक, फ्लाई ओवर तमाम है.
मौजूद नहीं झुग्गी की झोपड़ियां
और बियाबान पुश्ता का मैदान है.
वाह! कहीं शोर नहीं, शांत सा महौल है.
कुछ इलाकों में बस गरीबी की चित्कार है.
वरना बाकी शहर में इत्मिनान है.
प्रधानमंत्री की दीपावली पर शुभकामना है.

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अलग तेवर से सच को उघारती रचना..प्रभावित हुआ

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  2. चित्र ही सब बयां कर जा रहा है और उस पर से ये पंक्तियां..!!


    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल ’समीर’

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  3. सच यही है !!
    पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
    जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!

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