शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

धूप और साल को नमस्ते


जैसे आंगन से रोज

आकर धूप चला जाती है,

वैसे ही ज़िंदगी से हर साल

एक साल चला जाता है...


जैसे अलसुबह की अंगड़ाई

धूप की गर्मी से उखड़ जाती है

वैसे ही जीवन का सफर

हर साल बढ़ चला जाता है...


जैसे दिन का पहर

धूप के जाने के साथ ढ़ल जाता है

वैसे ज़िंदगी का एक पन्ना

गुजरते साल के साथ साफ हो जाता है...


अगली धूप और अगले साल को

नमस्ते!!!!!