बुधवार, 13 जून 2012

लोहिया की ज़िंदा क़ौम कब जागेगी

लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण पाठ यह है कि जनता कभी ग़लती नहीं करती, गलती तो सरकार करती है, नेता करते हैं, प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर वित्त मंत्रालय के सचिव करते हैं। उनसे जो छूटता है वे गलतियां नीचे के बाबू कर बैठते हैं. संसद में जनता की नुमांइदगी करनेवाले सांसद भी गलती के पुतले हैं. और अब तो लोकपाल के लिए लड़ने वाले अन्ना हजारेभी गलती कर रहे हैं। इसीलिए उनकी टीम टूट रही है. कालेधन की लड़ाई लड़ रहे रामदेवने भी गलती की, उन्हें उस रात रामलीला मैदान से भागना नहीं चाहिए था. सभी गलत हैं,बस एक जनता गलत नहीं है. माओवादी भी गलत हैं, वे हत्याएं करते हैं.

कुछ दिनों पहले ही देशकी प्रगतिशील सरकार ने तीन साल पूरे कर लिए हैं, इससे पहले प्रगतिशील सरकार नम्बरएक ने पांच साल पूरे किए थे. फिर दो हजार नौ में चुनाव हुए और देश की तमाम राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी गलतियों के पिटारे के साथ जनता के सामने पहुंचीं और विजयी भव: का आशीर्वाद मांगा. जनता ने भी अपना धर्म निभाया और दिल्ली के नारों को अपने अपने प्रदेश में सुनने के लिए वोट डाला. जनता जानती है कि कुछ एक प्रदेशों के क्षेत्रीय दलों के समर्थन से कांग्रेस ने यूपीए दो का गठबंधन बनाकर दिल्ली में सरकार बनाई है सो उसकी कुछ मजबूरियां भी हैं क्योंकि जिन मंत्रियों से गलती हो रहीहै वे कांग्रेस के नहीं हैं. मसलन शरद पवार जो कृषि मंत्री हैं, दूरसंचार मंत्रीरहे ए राजा और रेल मंत्री रहे दिनेश त्रिवेदी, ये सभी गलत हैं और गलत है कांग्रेस पार्टी जिसने मजबूरी में इन्हेंसरकार में शामिल किया क्योंकि इनको वोट देकर जिताने वाली जनता तो कभी गलती करती हीनहीं है. ऐसे अजीबोगरीब मंत्रिमंडल से कहीं जनता में गलत संदेश ना चला जाए औरयूपीए तीन की उम्मीद को ग्रहण ना लग जाए, इसके लिए बदलाव की नीति बनाई जाती है. बदलाव को रोकने का सबसे कारगर तरीका बदलाव का भ्रम पैदा करना होता है, यह दूसरी महान नीति है जिससे लोकतंत्र ज़िंदा रहताहै.

हमारे देश मेंअंग्रेजों ने इस मंत्र का खूब इस्तेमाल किया. पंद्रह अगस्त सन् सैंतालीस को यह भ्रम राष्‍ट्रवा दी मंत्र के रूप में स्वीकार किया गया और आज भी बदलाव के इसी मंत्र केदम पर हिन्दुस्तान की सरकारें जनता के सामने गुलाबी तस्वीरें पेश करती हैं और कहती हैं कि जनता जनार्दन कभी गलती नहीं करती है. वर्तमान प्रधानमंत्री ने भी बदलाव केभ्रम का खूब फायदा उठाया, आर्थिक सुधारों के पुरोधा के तौर पर जाने जाने वाले मनमोहन सिंह ने जब 1992 में आर्थिक सुधारों की नींव रखी थी तो कहा था कि अब सोचबदलने का वक्त आ गया है. उन्होंने ऐसा सोच बदला कि अप्रैल 2004 से अप्रैल 2012 केबीच सभी जिंसों की कीमतों में 63 फ़ीसदी की वृद्धि हुई और खाद्य वस्तुओं में कीमत वृद्धि98 से बढ़कर 206.4 फ़ीसदी पर पहुंच गई. क्या यह मनमोहन सिंह की गलती नहीं है. बिल्कुल हैउन्होंने क्यों भ्रष्ट मंत्रियों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया. यूपीए एक मेंकांग्रेस ने उनके ईमानदार प्रधानमंत्री की छवि का भ्रम बनाए रखा और एक अराजनीतिकव्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाकर बदलाव काभ्रम पैदा किया. जब सरकार की ईमानदार छवि पर दाग़ लगा तो मजबूर प्रधानमंत्री कीछवि पेश कर दी गई. जनता से मनमोहन सिंह ने कहा कि गठबंधन धर्म की कुछ मजबूरियांहोती हैं और जनता ने सहर्ष बदलाव के इस भ्रम को स्वीकार कर लिया। तभी तो पेट्रोलके दाम 7.50 रूपए बढ गए और जनता सिर्फ सरकार को कोसती रह गई, क्योंकि तेल के दामअब अनियामित ही हैं और इसका घटना बढ़ना सब तेल कंपनियों के हाथ में है जो वैश्विक बाज़ारकी कीमतों के मुताबिक फ़ैसला लेती हैं. लेकिन आश्चर्य है कि ये दाम चुनाव के बादही बढ़ते हैं या फिर संसद सत्र खत्म होने के तुरंत बाद. बहरहाल बदलाव के भ्रम की नीतिने सरकार को इसके आरोपों से सीधे तौर पर बचा लिया है, आप मानें चाहे ना मानें, ये 2014 के चुनावों में साफ हो जाएगा. ठीक पांचसाल बाद जब लोहिया के लोग ज़िंदा कौम के जागने की उम्मीद लगाए ईवीएम मशीन के खुलनेका इंतजार कर रहे होंगे और जनता जब जाग जाएगी तो क्रांति आ जाएगी- यह मानकर लाल सलाम ठोंकने वाले लोग जब नतीजेदेखेंगे, तो देश के बेहतर भविष्य के लिए एक सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त करेंगे. बीते तारीख को लोहिया के मुलायम तीन साला रिपोर्ट कार्ड लिए यूपीए दो के संग मंच साझा करते हैं तो लाल सलाम करने वाले लोग तय नहीं कर पा रहे हैं किसके साथ खड़े हों। यूपीए एक में सरकार का समर्थन करते थे तो यूपीए पार्ट टू में उसके राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम कां इंतजार करते हैं ताकी वो अपना स्टैंड रख सकें, अजीब है.

कुल मिलाकर ये बात बहुत साफ है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियों की नीति सिर्फ पार्टी चलाने तक है,लोकतंत्र को ज़िंदा रखने का भ्रम पैदा करके वे अपनी अपनी पार्टियों को ज़िंदा रखनेकी कोशिश में लगी रहती हैं. और ज़िदा जनता चुनावों के वक्त ये भूल जाती है किईमानदार छवि और आकर्षक विचारधारा सिर्फ भ्रम पैदा करने के लिए है ताकी वे गलतियां करें. एक बार फिर से सोचिएगा कि पेट्रोलके दाम बढ़ ने के लिए कौन जम्मेदार है?




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